मुझे कुछ दुखों की सिलवटें निकालनी हैं
लगाने हैं टूटे हुए हुक संबंधों के
टाँकने हैं बटन बच्चों के कपड़ों में
रफू कराने हैं आपस के कुछ झगड़े
कुछ मुलाकातें किसी बक्से में बंद बंद पड़ी रहीं
सीली सी महक आती है उन्हें धूप दिखानी है
मौसम एकदम ठंडा हो जाने से पहले
समय कुतर डालेगा तो ढकने के लिए कुछ बचेगा नहीं
सिलाने हैं थोड़े से रूई जैसे बादल
छोटी हो गई हैं अपनेपन की आस्तीनें
बातों के कालर फट गए हैं
दुविधा बनी रहती है उन्हें बदलूँ या नहीं
बिस्तर की चादर में काढ़ने हैं तारे बादल नाव
फिर से पेंट करना चाहती हूँ पर्दों को
पत्तियों को इतना हरा फूलों को इतना कोमल
तितलियों को उतना रंगीन जितनी बचपन में
इन पर्दों के पीछे एक खिड़की खुलती है
जिसके उस पार अधूरा से पूरा होने की कोशिश में चंद्रमा है
पर्दों को खींचकर उदासी पर
सो जाना चाहती हूँ सर्दी की एक बारिश में
भले ही सोकर उठने पर घेर लेगी डूबने डूबने जैसी छाया
बचपन से सुनती आई हूँ
खोई हुई चीजें दुबारा नहीं मिलतीं
तो जितनी देर इस देखभाल में लगी रहूँगी
उसे लगा सकती हूँ किसी और काम में
शायद अपने बारे में सोचने में
एक नई भाषा और उससे भी पहले
एक नए संगीत के आविष्कार में